Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ३२७
४०. ।अबदुलखां दी चड़्हाई॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>४१
दोहरा: पुज़त्र मरे ते शोक भा, रुदति नबाब बिसाल।
तिस छिन को पछुतावतो, जबि चढि आइ अुताल ॥१॥
चौपई: इम देखो जबि अबदुलखान।
लोक लरनि ते हटे महान।
आप आपि को थिरे पिछेरे१।
को को चलहि तुपक तिस बेरे ॥२॥
जंग अुझार* समान बिलोका२।
पिखि नबाब को सभि को शोका३।
दोनहु खत्री ढिग चलि आए।
जिनहु लरनि को सरब चढाए ॥३॥
करहि त्रास थिर दूरि रहे हैण।
मरे बहुत लघु जियति लहे हैण।
कितिक बारि लौ रुदति थिरो है।
बहुर नबाब बिचार करो है ॥४॥
-सभ लशकर को अहौण अधारा४।
बिदतहि बात गुरू ते हारा।
शाहु जहां सुनि देहि निकारा।
कहां रहौण मैण खाइ अहारा ॥५॥पुज़त्र गए मरि बीर बिसाले।
धिक जीवन मेरो इस काले।
हरिगुविंद को गहौण कि मारौण।
तौ जीवनि को नीक निहारौण ॥६॥
नतु जहि पुज़त्र गए मरि आगे।
जाअुण आप मैण तिन संग लागे।
लरिबे हटौण नहीण मुझ नीकी५।
१(पिज़छे हो हो) खलो गए।
*पा:-अुजार।
२जंग अुजाड़ तुल डिज़ठा (अ) जंग विच अुजाड़े दा सामान डिज़ठा।
३नवाब वल वेखके सभ ळ शोक (अुपजदा है, किअुणकि दोवेण पुज़त्र अुस दे मारे गए हन)।
४मैण आसरा हां।
५लड़न तोण हज़ट रहिंा मेरे लई चंगा नहीण।