Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ४४
५. ।राज कौर दा हाल॥
४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>६
दोहरा: बसे पांवटे पुरि बिखै, हय सैना समुदाइ।
मंगल अनिक प्रकार के, दिन प्रति गन सुखदाइ ॥१॥
चौपई: जित कित ते गन संगति आवै।
बसत्र शसत्र बहु बिधि अरपावै।
बहु मोले हय तुरकी ताग़ी।
चपल बली आनहि बर बाजी१ ॥२॥
बिदत बात सभि जगत मझार।
सतिगुर चाहति हय हज़थार।
सुनि सुनि सिख बहु जतन अुपावैण।
जित कित दरब देति हय लावैण ॥३॥ब्रिंद बलाइत ते हज़थार।
खरचहि धन को रुचिर निहारि।
जबि अरपहि सतिगुर के तीर।
खुशी देति सिज़खन गंभीर ॥४॥
सै, तुफंग, तिखी तरवारैण।
बिछूए बाणक दुधारनि धारैण२।
कौन कौन के गिनीअहि नामू।
आनहि शसत्र महिद अभिरामू ॥५॥
जबि अरपहि गुर कर महि धारैण।
लोहा परखहि भले निहारैण।
करहि सराहनि अनिक प्रकारा।
देण सिख कौ पुन खुशी अपारा ॥६॥
तिम ही तरल३ तुरंगम हेरैण।
जो आनहि देण खुशी बडेरैण।
यां ते चित महि चौप चहंते।
जित कित ते आनहि धनवंते ॥७॥
नितप्रति रहति भीर दरबार।
१सेशट घोड़े।
२टेढे ते दो धाराण वाले बिछूए ।बिछूआ इक प्रकार दी कटार है जो बिज़छू दे डंग वाणू टेढदार
हुंदी है। बाणक = टेढा॥। (अ) बाणक = इक खमदार शसत्र बी है।
३चंचल।