Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ४५

५. ।पहाड़ीआण दी नौरंगे अज़गे फरिआद॥
४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>६
दोहरा: देखो१ बडो कसूर को गुर की जबरी बात।
पंथ खालसा मिटति नहि वधिति जाति अवदात ॥१॥
चौपई: भीम चंद दुख पाइ घनेरा।
ग्राम अुजारे, बहु बल हेरा२।
गुरू सूरमा रण प्रिय अहै।
सदा जंग चित चाहति रहै ॥२॥
भयो बिबस कुछ जतन न जानोण।
होनि पुकारू मिल मति३ ठानोण।
सभि राजन नीकी मन मानी।
ले करि धन गन तारी ठानी ॥३॥
दोहरा: भीम चंद कहिलूरीआ लीनि हंडूरी नाल।
करे कूच दर कूच कोदिज़ली गए अुताल ॥४॥
चौपई: दे करि भेट बहुत बिधि नाना।
ग्रीव निवाइ सलाम बखाना।
मिल सूबे संग अरग़ गुजारी।
इक हग़रत है! ओट हमारी ॥५॥
बहु संमति बीते चढि गयो४।
अपने थान तुमे करि दियो।
यां ते हमरे हो रखवारे।
ग़ोर ग़ुलम जो करहि न्रिवारे५ ॥६॥
आगे तुमहु हिमायति करी।
दस हग़ार सैना बलि भरी।
पठि अुपराला कीन हमारा।
मचो जुज़ध दारुन तिस बारा ॥७॥
पुन सिरं्हद को सूबा गयो।
लरि करि गुर सरिता तट लयो।


१(पहाड़ीआण) ने देखिआ।
२गुरू जी दा बड़ा बल देखिआ।
३सलाह।
४भाव दज़खं ळ मुहिंम ते गए ळ।
५(तिस ळ) दूर कर दिओ।

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