Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३३६

४७. ।मरी हटाई। बदलां दी छां कीती॥४६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>४८
दोहरा: श्री सतिगुर नदन तहां, बसतो समो बिसाल।
करो बितावनि को जबै, मरी१ परी इक काल ॥१॥
चौपई: भयो त्रास जबि दिज़ली पुरि मैण।
रुदित अमुदति शोक घर घर मैण।
हाहाकार म्रितू के त्रासा।
मरहि तुरत अुपचार न आसा२ ॥२॥
राअु रक सभि के इक सार।
पंडत मूढनि परी पुकार।
घर घर रोदति हैण नर नारी।
केस अुखारहि मुरछा धारी ॥३॥
दसत, बमन३ दोअू लगि जाइ।
इक दुइ जाम बिखै म्रितु पाइ।
करि अुपचार४ बैद पच हारे५।
नहि बस चलहि सु कौन बिचारे ॥४॥
शाहु सभा महि नितप्रति बाती।
करहि सभा महि, म्रितु जिस भांती।
आज पुरी महि एते मरे।
वहिर थान शमशाननि भरे ॥५॥
दबहि सैणकरे, सैणकर जारहि।
आवति जाते रुदति पुकारहि।
कहूं बैद फिरते अुतलावति।
केतिक औखधि दौरति लावति ॥६॥
शाहु निकटि के केतिक मरे।
जीवति महां त्रास कहु करे।
एक बार का कामत आई।
मरहि हग़ारोण नहिबिलमाई ॥७॥


१वबाई बीमारी (भाव हैग़े तोण है)
२इलाज दी आस ना रही।
३अुपरछल, कै।
४इलाज।
५थज़क हुज़टे।

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