Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ३४२
४६. ।जमना दे कंढे थां पसंद करनी॥
४५ॴॴपिछला अंसूततकरा रुति १ अगला अंसू>>४७
दोहरा: बजो नगारा कूच को, ग़ीन तुरंगनि पाइ।
भयो तार डेरा सकल, अुत नाहणपति राइ ॥१॥
कबिज़त: खेलिबे अखेर को समाजि राजि लीनि बाज१
बाज पै अरूड़ है२ गुरू के तीर आयो है।
कीनि पद बंदना आनद है मुकंद जानि,
चढे प्रभु बाह करि तुंद को चलायो है।
बाजति नगारे गिर भारे भारे नादति है३,
कानन पधारे गन पादप४ सुहायो हैण।
म्रिग को प्रहारैण छोरि तुपक प्रहारे केई,
गुरू बान मारे नहीण कोअू जानि पायो है ॥२॥
गिरवर तरे तरे तरोवर तरा तर,
बाट अरु पीपर बरनबर जाल हैण५।
हरड़, बहेड़ेखरे आणवरे६ अुचेरे पीन,
संदन७* बडेरे पै घनेरे क्रितमाल८ हैण।
कदर९, खदर१०, गन कदली११, कटर१२, जंबू१३,
सिंसमा१४, कदंब१५, सो मधूक१६, कचनाल हैण।
१राजा बाज आदि समाज लैके।
२घोड़े पर चड़्हके।
३भारी पहाड़ भारी गूंजदे हन।
४ब्रिज़छ।
५पहाड़ दे हेठ हेठ ब्रिज़छ हन (तरा तर =) बहुते बोहड़ ते पिपल (आदिक) सारे श्रेशट रंग दे
हन।
६आमले।
७तिनीखब्रिज़छ। (अ) गिआनी इस दा अरथ तुं वी करदे हन।
*पा:-संमल।
८अंबलतास।
९चिज़टी खैर।
१०खैर।
११केले।
१२कटहिर।
१३जामळ।
१४टाहली।
१५इक ब्रिज़छ जिस ळ बरसात विच गोल गोल पीले फुज़ल लगदे हन।
१६महूए।