Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ३५१
३८. ।पाहुल भेद। रहत। ब्रहमन लछण॥
३७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>३९
दोहरा: +केतिक दिन बीते बहुर, बैठे सभा मझार।
करैण रबाबी कीरतन, सुंदर शबद अुचारि ॥१॥
चौपई: रामकुइर निज ताग समाधि।
रिदे धान धरि गुरू अगाध।
सिख संगत गन सिंघ जि श्रोता।
सुनि सुनि सभि के अनद अुदोता++॥२॥
सतिगुर कथा करन लग भाई।
गुर सेवक के तन मन भाई।
भगति गान ते पूरन जोई।
सिज़खी अरु विराग महि भोई१:- ॥३॥
सज़दू मज़दू दोनहु भ्राता।
गावैण राग सुरनि के गाता२।
करी बिलावल चौणकी चारु३।
भोग पाइ अरदास अुचारि ॥४॥
पीछे सिंघन बिनती कीनि।
सकल कला समरज़थ प्रबीन।
कल महि करो खालसा बीर।
सभि ते अुज़तम गुनी गहीर ॥५॥
दोहरा: सरब शिरोमण खालसा
रचो पंथ सुखदाइ।
बिन इक गंदे धूम ते
जग महि अधिक सुहाइ ॥६॥
पूछैण परम सु प्रेम करि
रहिनी को बिरतंत।
+सौ साखी दी इह बाहठवीण साखी हुण चज़ली है।
++पा:-आनद होता।
१मिली होई।
२सुर ताराण दे जाणू।
३बिलावल दी चौणकी जो सवेरे सज़त अज़ठ वजे हुंदी है। चौणकीआण दे वेरवे लई तज़को रा: ५ अंसू ४३
अंक ३५ दी हेठली टूक।
इह छंद पिछे रास १ अंसू १ अंक ४३ विच आ चुज़का है।