Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३५७

त्रसति पठान बखानति अहै।
देश पंजाब दूर तहिण रहै ॥४३॥
फूट गयो जहाज जब मेरा।
दैव जोग करि१ इह थल हेरा।
तबि गुपतनि पूछो तिसु पाही।
लालू को तूं लखहिण कि नांही ॥४४॥
सुनि पठान हरखो बचु कहै।
हम लालो के ढिग ही रहैण।
मिलति सदीव बंदना करौण।
बडो संत भाअु सु अुर धरौण२ ॥४५॥
सादर तिह बिठाइ हित कीनो।
पता देश नगरी को लीनो।
जबि पठान सिमरो तहिण लालू।
द्रिग जल लीनि अुसास बिसालू३ ॥४६॥
इस को पिखि गुपतनि करि दया।
कोणरोवति? पूछन को किया।
हम लालू के सिख सभि अहैण।
तिमि करि देहिण जथा चित चहैण ॥४७॥
कहै पठान दिखावह लालू।
करिहु जि मुझ पर मिहर बिसालू।
सभि किछु खोइ दूर मैण आयो।
देश पंजाब चहौण अबि जायो ॥४८॥
गुपतनि दोइ लाल तिह दीने।
इह लालू की भेट सु कीने।
अपर जवाहर अपने हित लिहु।
इह दुइ लालो हम दिश ते दिहु ॥४९॥
तबि पठान लीने हरखाइ।
कहि तिन पुन इस द्रिग मुंदवाइ४।


१ईशर दी नेत कर।
२अुस दा प्रेम रिदे धारदा हां।
३लमे साह।
४तिन्हां ने कहिके इस दे नेतर मिटवाए।

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