Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३५९

३८.।खान छुरा आदि बहज़तर सिज़ख। महेशा। शेखां दे घर अुज़जड़ने॥
३७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>३९
दोहरा: खान छुरा+ डज़ले बिखै,
गुरमुख सिज़ख बिसाल
पूजहि पग पंकज सदा,
श्री गुर अमर क्रिपाल ॥१॥
चौपई: दीपा मालू शाही और।
सिज़खी करति बसहिण तिस ठौर।
नाम किदारी सिज़ख अुदार।
इज़तादिक सिख बहुत बिचार ॥२॥
गिनती बिखै बहज़तर भए।
श्री गुर अमर अुधारन किए।
कहौण अगारी कथा तिनहुण की।
हरी अबिज़दा गुरू जिनहुण की ॥३॥
नाम महेशा पुरि सुलतान।
बहुबाही१ अर धनी महांन।
सतिगुर की महिमा सुनि तांही।
अुपजो प्रेम महां मन मांही ॥४॥
गोइंदवाल गयो तबि आइ।
दरशन करि गुर को परखाइ।
पूरब भोजन लगर खायो।
बहुर जाइ सतिगुर दरसायो ॥५॥
बडे भाग ते बैठो पास।
निस दिन जिस के प्रेम सु पास।
बारबार बंदन को करिही।
समुख बैठि गुर दरसु निहरिही२ ॥६॥
बूझन हित गुर तिसे अलायो।+भाई गुरदास जी ने नाम खांळ छुरा दिज़ता है।
१बहु बाही दा अरथ इक जात करदे हन, पर महिणमा प्रकाश विच जिथोण दा इह प्रसंग है, इस
ळ बहु बाही वीर लिखिआ है, जिस दा मतलब है बहुतीआण बाहां वाला ते बहादुर। (अ)
बाहीआ = पज़ती। बाही = पज़तीदार। बहु-बाही = बहुतीआण पज़तीआण वाला, (देखो रास ११ अंसू
३४ अंक ४२)।
२देखदा है।

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