Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) ३५७
५२. ।संगत ळ अुपदेश॥
५१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>५३
दोहरा: सूरज असतो प्राणच* दिशि, भा संधा को काल१।
आइ जाइ सिख पुरी ते, दरसति गुरू क्रिपाल ॥१॥
चौपई: ब्रिंद मसंद थिरे सभि आइ।
जे गुरबखश आदि मुखि गाइ।
अंतर वहिर भीर बहु होई।
धरे शोक बोलति नहि कोई ॥२॥
दरशन करहि वहिर थिर होइ।
वाहिगुरू सिमरति सभि कोइ।
पुरि कीसंगित के सिख साने।
गुर चरित्र ते अुर बिसमाने ॥३॥
सभि गुरबखश संग मिलि कहो।
अबि मिलि गुर दरशन को लहो।
समां कहनि को लखि मन मांही।
बूझहु सकल होइ करि पाही ॥४॥
जबि हुइ जै हैण अंतर धान।
रिदे बिसूरति रहहु महान।
नहीण संदेह होइ जिस भांति।
सुनियहि गुरू बाक बज़खात ॥५॥
जथा करनि अरदास अगारी।
मिलि सभिहूं तिम भले बिचारी।
तबि गुरबखश भले समुझायो।
जिम इस समे कहनि बनि आयो ॥६॥
ठहिरो मत जिम सभिहिनि केरा।
कहिबे हित अगेर सो प्रेरा।
भए संग तिस के सिख साने।
*इथे पद प्राणच पिआ है, इसदे अरथ हन पूरब किसे लिखती नुसखे विच पाठ है सूरज
अथे अवाणची दिसि इसदे अरथ हन दज़खं। सूरज ना पूरब डुबदा है ना दज़खं। इह संभव
जापदा है कि अुस दा दरुसत पाठ ऐअुण सी सूरज अथो अप्राणच दिश। अप्राणच नाम पज़छोण दा है।
सो लिखारीआण दी क्रिपा नाल अप्राणच दा प्राणच हो गिआ होणा है। या असताप्राच ।असति+अप्राणच॥
पाठ होवे जिस तोण असतो प्राणचलिखारीआण ने बणा लिआ।
१सूरज डुब गिआ, पूरब दिशा वल संधिआ पै गई।