Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ३५७

४८. ।नद चंद ते दयाराम राम राइ पास गए॥
४७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>४९
दोहरा: भयो सुभट समुदाइ बड,
गाढो गढ जबि पाइ।
जे तरकति१ गुर सदन को,
तिनहु त्रास अुर पाइ ॥१॥
चौपई: निकट पांवटे पुरि के जिते।
दस दस बीस कोस महि हुते।
ते सभि मिलि मिलि करहि बिचारा।
जोधा गुरू भयो बलि भारा ॥२॥
चलहि तीर को सकहि सहारी।
दल बल ते को टिकहि अगारी।
इम कलीधर की सुधि सारी।
रामराइ ढिग जाइ अुचारी ॥३॥
बीस कोस गुर पुरि ते परे।
तिसी दूं महि बासो करे।
संगति घनी आनि करि सेवै।
कर को जोरि अकोरन देवै ॥४॥
देशन महि मसंद गन फिरैण।
जहि कहि ते धन लावनि करैण।
जबि ते चवज़गता चढि गयो२।
गुर के दास३ निकासन कियो ॥५॥
तबि ते इत दिशि को चलि आयो४।केतिक ग्राम न्रिपन ते पायो*।
जहि कहि अग़मत दे बहु बारी।
पूजा अपनी जगत पसारी ॥६॥

१जो दोश देणदे सी।
पांवटे तोण त्रै कु मील अुपर जाके पज़तं है इस तोण जमना पार होके सिज़दे रसते डेहरादून है
पारले किनारे। एथे अज़ज कज़ल जंगल दा बंगला है। जमना दा इह पासा (डेहरादून वाला) तदोण
गड़्हवालीए दा सी।
२भाव दज़खं ळ चड़्हके गिआ सी।
३भाव मतीदास ने।
४चल आइआ सी (राम राइ)।
*हुण तक महंतां पास राजिआण दे दिते त्रामे दे पटे पए हन।

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