Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३६६

गुर सथान नीवोण बिरधावै१*।
श्री परमेसुर है समरज़थ।
संतन को राखति दै हज़थ+ ॥४४॥
जिन के ऐसे भयो गिआना।
सेवैण गुरू भाव धरि नाना++।
कही संतोख सिंघ इह कथा।
जिनहि सुनी तिन काल न मथा*+ ॥४५॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे शेखन प्रसंग बरनन नाम
अशटत्रिंसती अंसू ॥३८॥


१गुर सथान विच जो नीवाण (बणेगा) सो वधेगा।
*पा:-बध जावै। नम्र ब्रिज़धावै।
+इह दो तुकाण इको नुसखे विच सन।
++इह दो तुकाण ४नुसखिआण विच सन।
*+इह दो सतराण भी इको नुसखे विच सन।

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