Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३७६
४०. ।जोध रसोईआ। प्रिथी मल। तुलसा। मज़लं। अुज़गर सैन। रामू। दीपा।
गोपी। रामू महिता। मोहण मल। अमरू। गंगू। सहारू। खान छुरा। बेगा पासी।
नदु सूदना। अुगरू। तारू। झंडा। पूरो। मलार। सहारू छीणबा। बूला पांधा। तेडज़ले वासी सिज़खां ळ अुपदेश।॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>४१
दोहरा: जोध रसोईआ देग महिण,
गुर हित करति अहार१।
बिज़प्र जाति सेवा करे,
अुर हंकार निवारि ॥१॥
चौपई: धन आदिक जे सिख गन लावैण।
भेट धरहिण सतिगुरू मनावैण।
सो सभि जोध रसोईआ लेति।
लगर पर लगाइ करि देति ॥२॥
इक दिन महिण जेतो लग जाइ।
तितिक लेति, लगर महिण लाइ।
दिन अगले हित रहनि न पावै।
वधहि जि पसूअन वहिर खुवावै ॥३॥
नांहि त सरिता मांहि गिरावै।
जल गागर ते सकल डुल्हावै।
नीर आदि हित प्राति२ न धरै।
कहां अंनकी गिनती करैण ॥४॥
इमि गुर हुकम सु बरतहि जोध।
लगर कार करहि हित बोध३।
पाछे कुछ भोजन रहि जाइ।
बिना साद ते खाइ, बिताइ४ ॥५॥
गुर के सिज़ख जानि समुदाई।
सभि की सेवा करहि बनाई।
जो जिस काल पुरी महिण आवै।
१बणाअुणदा हुंदा सी भोजन।
२सवेर लई।
३प्रेम (नाल ते) अकल(नाल) लगर दी कार करदा है। (अ) लगर दी सेवा करदा है वाहिगुरू
गिआन दी प्रापती लई।
४खाके दिन बिताअुणदा है (जोध)।