Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ३८२
४४. ।सज़ता बलवंड। भाई लधापरअुपकारी॥
४३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>४५
दोहरा: धरमसाल सालो जहां, तिस के निकट निकेत।
-आप जाइ आनहि तिनहि, -गमने गुर इस हेतु ॥१॥
निसानी छंद: गमने श्री अरजन तबहि, तिन सदन मझारे।
करनि हेतु आदर शबद, सो गावन हारे।
श्री नानक ते आदि गुर, सभिहिनि इह६ राखे।
गाइ गुरू के सबद को, सिख सुनहि भिलाखे१ ॥२॥
बहुतनि को कज़लान है, सुनिबे अरु गाए।
बहुरो आदर शबद को, बीचारति जाए।
पौर प्रवेशे सदन महि, श्री अरजन ठांढे।
देखि न आदर अुठि करो, अुर गरब जु बाढे ॥३॥
बैनि रहे दोनहु मुगध, मुख धरि करि मौना।
महिमा लखहि न गुरू की, चलि आए भौना२।
सज़ते अरु बलवंड को, श्री अरजन भाखी।
को कारन ऐसे भयो, जिस ते रिस राखी? ॥४॥
आवन जानो दरब है, नहि थिरता पै है।
इस ते रिस तुम कोण करी, पुन बहुतो दै हैण।
श्रीनानक को कोश३ है, कमती कुछ नांही।
शरधा धरि किरतन करहु, आवहि तुम पाही४ ॥५॥
सुनि बोलो बलवंड तबि, हम पिखो न कोई।
कहां खग़ानो है धरो, तुम भाखति जोई।
इक सहंस मेण बाहु हुइ, सौ हम ने पाए।
नहि गमनहि तुम निकट अबि, का लेहि कमाए ॥६॥
अपर थान रहि करि कहूं, निज राग सुनावैण।
लेहि दरब अुर भावतो, कहि तान रिझावैण।
जिते बरख तुम ढिग रहे, बिज़दा निज खोई।
सुनि रीझति जानति गुननि, पै मौज न कोई१ ॥७॥
१चाह नाल।
२कि साडे घर तुर के आए हन।
३खग़ाना।
४भाव धन तुहाडे पास आ जाएगा।