Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 369 of 494 from Volume 5

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ३८२

५०. ।कज़टू शाह। सेवादास ळ बखशिश॥
४९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>५१
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू, बासे दोस कितेक।
दरसहि सिज़ख निहाल हुइ, केतिक लहो बिबेक ॥१॥
चौपई: किस कोप्रापति सति संतोश।
को ब्रहम गानी भए अदेश।
सज़तिनाम सिमरनि किस पावा।
निस दिन अुर अंतरि लिवलावा ॥२॥
अुचित मुकति के केतिक भए।
गुर संगति ते दोशनि होए।
इक दिशि ते सिख आवति ब्रिंद।
बासन मधु को१ भरो बिलद ॥३॥
मग महि घर रहि कज़टूशाहु।
ब्रहम गान जिस के अुर मांहु।
तिस के सदन रहे सिज़ख सोई।
निसा बिताइ चलहि मग जोई ॥४॥
कज़टू शाहु सेव सभि करी।
गुर संगति लखि शरधा धरी।
खान पान आछे करिवाइ।
सुपतनि को दीनी शुभ थाइ ॥५॥
भई प्रात अुठि संगति सारी।
क्रिया शनान आदि सभि धारी।
जबि होए चलिबे कहु तारी।
बानी कज़टूशाह अुचारी ॥६॥
इस बासन महि का ले आए?
भो गुरु सिज़खहु! देहु दिखाए।
सुनि करि कहो मधू शुभ जाति२।
श्री सतिगुरु हित ले करि जाति ॥७॥
अधिक फिरे इह कीनि बटोरा।
गुर रसना की लायक टोरा।


१बरतन शहिददा।
२शहद चंगी किसम दी।

Displaying Page 369 of 494 from Volume 5