Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 373 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३८८

बैठे बारी बीच निधाना ॥१३॥
बिज़प्र बुलाइ कहो सुन प्रोधा!
करो सगाई भानी सोधा१।
सुनि दिज+ कहो सुनो क्रिपालू!
एस बाल सम होवै बालू? ++ ॥१४॥
सुनि बच ब्रिज़प्र, मौन गहि लीनी२।
इसै बुलावहु गुर कहि दीनी*।
सुनि बिप रामदास बुलिवावा।
आइ गुरू ढिग सीस निवावा ॥१५॥
हाथ जोरि बैठो गुर पास।
अमरदास गुर बाक प्रकाश।
काण को सुत? को जात सथाना३?
कहो मोहि ढिग सभि बिबधाना४+ ॥१६॥*पा:-इह।
१विचारके।
+पा:-बिप्र।
++महिमां प्रकाश विच दोहां बीबीआण दे विवाह गुरू अमरदेव जी खडूर आअुण तोण पहिलां कर चुके
लिखे हन। गुरू अंगद देव जी वर दान देके श्री अमर देव जी तोण पुछदे हन:- होइ दिआल
प्रभु पूछत भए॥ तुमरे संतान पुरखा किआ अहे॥ गुर अमर साहिब सभ कथा सुनाई॥ दुइ
कंना थी सो दुअू बिआही॥१९॥ फिर लिखिआ है जदोण ब्राहमण ने श्री अमर दास जी दे चरनां
विच कमल डिज़ठा है, अुस तोण पहिलां लिखदे हन कि अब ग्रिह आश्रम बिधि सुनो जु अही॥ दुइ
कंना साहिब ग्रिह भई॥ ताका कुटंब काज सभ कीना॥ बिध संजोग बाह कर दीना॥ हुण जे
कवि संतोख सिंघ जी दा आपणा दिज़ता हिसाब करीए तां बी बीबी भानी जी दा विआह खडूर
साहिब आअुण तोण पहिले हो चुका सिज़ध हुंदा है। यथा:-
गुरू अमर देव जी अवतार दा संमत १५२६ है ते कवि जी लिखदे हन-कि ८४ वर्हे दी
अुमर विच गदी ते बैठे, (देखो इसे रासि दा अंसू ७ अंक १८)। इस हिसाब गज़दी दा संमत
१६१० होइआ, ते इसे अंसू दे अंक २० विच कवी जी प्रिथीए दा जनम १६०५ विच दज़सदे
हन, सो साफ सिज़ध हो गिआ कि गुरू अमर देव जी दे गज़दी बिराजं तोण पहिले बीबी भानी दाविवाह हो चुज़का सी। तांते इह साखी यां तां होई ही नहीण, जो होई है तां बासरके रहिणदिआण दी
वारता है, जदोण अजे आप गुरू अंगद जी दे पास आए नहीण सन, पर महिमां प्रकाश विच ओथे बी
इह साखी नहीण दिज़ती। इह बी औखा दिज़सदा है कि कवी जी आपणे दिते संमतां दा हिसाब ना
करन ते भुज़ल विच लिख जाण, तांते इहो शुबह हुंदा है कि किते इह किसे सजं दा आखेप ना
होवे। पर इह निसचै है कि बीबी भानी दा विआह आप दी गदी नशीनी तोण पहिलां हो चुका सी।
२भाव गुरू जी ने।
*पा:-पुन बोले या बुलाव प्रबीनी।
३किसदा पुज़त्र, की जात ते किहड़ा वतन है?
४वेरवा।
+पा:-बिधि नाना।

Displaying Page 373 of 626 from Volume 1