Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३८६

५५. ।कहाराण तोण बिनां पालकी चलाई॥
५४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>५६
दोहरा: सतिगुर पुज़त्र प्रसंन अति, अग़मति परम दिखाइ।
सभि कूरे बहु बार किय, हारे मूढ अुपाइ ॥१॥
चौपई: अधिक रहो सभिहिनि पर बली।
शाहु समेत सभिनि मति छली।
किम इह हारहि तुरक बनावहि।
मूढ मुलाने शाहु सिखावहि ॥२॥
नहि बस चलो अुपाइ निफलते१।पच पच हारे सतिगुर बल ते२।
तीन लोक महि अस नहि कोई।
जीत सकै गुर घर कहु जोई ॥३॥
तुरक बापुरे गिनती का हैण।
अर करि मूरख समता चाहैण।
आगा सभि ब्रहमंड के मांही।
नित अनुसारि, बिपरजै नांही ॥४॥
जिम सतिगुर के अुर कहु भावै।
तिस प्रकार निज चलति दिखावैण।
चौदहि लोक बिखै चहि जैसे।
अुचितानुचित रचति तबि तैसे ॥५॥
जे करिबो नहि चहित गुसाईण३।
सिर हरिबो लगि मौन रहाईण।
श्री सतिगुर पूरन भगवान।
शुभ सरबज़ग अुतंग महान ॥६॥
निज सुत की रसना पर बासे।
जिम बोलहि तिम करति प्रकाशे।
बिलम न लगहि बनहि ततकालहि।
तीन लोक पर आयसु चालहि ॥७॥
पुन श्री रामराइ मन जाना।


१विअरथ होए।
२सतिगुरू जी दी ताकत नाल।
३जे (करामात) लगावंी ना चाहुण सतिगुरू जी।

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