Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ३९२
५६. ।रामराइ जी दी सखावत। साहन साह॥
५५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>५७
दोहरा: पुनि इक दिन गमने सभा,
नदन श्री हरिराइ।
बैठे अूचे जाइ करि,
जिस प्रताप रहो छाइ ॥१॥
चौपई: सरब रीति ते सरब हटाए।
दोखी दुशट बिसाल दबाए।
करि न सकहि कै सिअुण बुरिआई।
बार बार अग़मति पतिआई ॥२॥
सूरज सम प्रताप को करि कै।
तुरक तेज तारन तुल हरि कै।
अचल सुजसु अपनो बिसतारा।
सभि के अूपर भयो अपारा ॥३॥
शाहु करो अपने अनुसारी।
दोखी दुखहि देखि दुति भारी।
भरी कचहिरी बैठो शाहू।
तबि सुात आई चलि पाहू ॥४॥
किसी देश ते पठई काहूं।
वसतु अमोलक देखहि ताहूं।
कंचन के कंकन शुभ बने।जिस पर लगे जवाहर घने ॥५॥
हीरे जटति दमक बड अुठे।
पहिरनि शाहु हेतु किन पठे।
सभा बिलोकति रहे लुभाए।
पिखहि नुरंगा हाथ अुठाए ॥६॥
तबि श्री रामराइ बच कहे।
कंकन अजब आज इहु लहे।
हम कहु देहु पहिर हैण हाथ।
ले करि तुम ते दिज़ली नाथ! ॥७॥
नहीण अपर बल ऐसे होइ।
नतु करवाइ लेति इम दोइ।