Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३९५

आइसु मानि गए ततकाला।
बैठे, जिह ठां पौर बिसाला ॥५३॥
तिस छिन अकबर के परवाने।
आए बड तूरनता ठाने।
भनो बीरबल सोण तिन नरन।
इस पुरि महिण गन खज़त्री बरन१ ॥५४॥
अबि लौ हुकम मानि नहिण आए।
संधा परी सु समां बिताए।
हुकम आप को होइ सु करैण।जाइण तिनहुण ढिग, कै इत टरैण२ ॥५५॥
कहो बीरबल अबि निस परी।
प्रात मुकाम करहिण इसु पुरी।
तबि सभि को गहि कै मंगवावैण।
नांहि त हुकम मानि करि आवैण ॥५६॥
भयो तिमर सिख सुनि करि आए।
बिगरहि प्राती गुरनि बताए३।
कहिण श्री अमर मुकाम न होइ।
बेग इहां ते गमनहि सोइ ॥५७॥
नहिण चिंता चित बिखे बिचारो।
रहो अनदति सदन सिधारो।
सुनो बीरबल जबहि प्रवाना।
लिखी जिसी महिण शीघ्र महांना ॥५८॥
तिसी देश भा दुंद घनेरा४।
लूट कूट लीनो दल डेरा५।
नहिण कित ठहिर मुकाम करीजहि।
दीह मजल ते तहिण पहुणचीजहि ॥५९॥
करहु जाइ सर६ लरहु घनेरे।


१कहीदे हन (अ) जाति दे।
२अथवा इथोण टल जाईए।
३गुरू जी ळ दज़सिआ सवेरे विगाड़ हो जाएगा।
४भाव पशचम देश विच बड़ा अुपज़द्रव हो पिआ है।
५(हे बीरबल तैथोण अज़गे जेहड़ा इधर दा) दल (सी), अुस दा डेरा लुट कुट लिआ है (वैरी ने)।
६फते करो।

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