Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ३९८
४९. ।दिज गंगा राम बाजरा वेचं आइआ॥+
४८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ५०
दोहरा: नगर बठिडे महि बसहि, इक दिज गंगा राम।
लादि अंन बहु बाजरा, आइ बनज के काम ॥१॥
चौपई: चलो चलो सतज़द्रव अुलघाइव१।
पार बिपासा ते अुतराइव।
माझे महि बूझो तबि जाइ।
अंन बाजरा कहां बिकाई? ॥२॥
जिस थल छिज़प्र लेहि को मोल।
दे करि हटौण सकल ही तोलि।
तबि लोकन तहि कहो सुनाइ।
श्री गुर अरजन ताल लवाइ ॥३॥
तहां अंन को खरच घनेरो।
सिख संगति के ब्रिंद बडेरो।
अनिक मजूर कार को करैण।
निस बासुर तिस ही थल थिरैण ॥४॥
तहां पहूंचैणगो जिस बारि।
हुइ है सकल तोर बिवहारि।
ले करि दरब तुरत घर जै हैण।
अपर थान इम नहीण बिकै है ॥५॥
सुनि लोकन ते चौप बिसाला।
लादि अंन सभि गुर दिश चाला।
सने सने पहुचो तहि जाइ।नाम जु गुर को चज़क कहाइ ॥६॥
अपन अंन सभि जाइ अुतारा।
डेरा करि हरखो अुर भारा।
जहि मानव समुदाइ दिसंते।
देश बिदेशन के बिचरंते ॥७॥
होति ताल की कार बिसाला।
+इक लिखती नुसखे विच इस थावेण पैड़े मोखे दा प्राण संगली लिआअुण वाला अंसू दिज़ता है जो
इथे ते होरनां नुसखिआण विज़च तीसरी रास दा बज़तीवाण अंसू है।
१सतलुज लघिआ।
पा:-फिरयंते।