Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) ४०२

४३. ।आतम वीचार-जारी॥
४२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>४४
दोहरा: अथ करता:-
नख शिख लौ१ तन थूल महि
अहं बिरति२ जिन कीनि।
सो करता लखीयहि रिदे
चीनहु सिज़ख प्रबीन ॥१॥
क्रिया:-
इंद्रय दारा निकसि कै
विरति विखय लौ जाइ३।
क्रिया कहैण तिस विरति को४
सतिगुर देति सुनाइ ॥२॥
करम:-
बिखय अहैण शबदादि जे
सभि के सहिज सुभाइ।
तिन संग बापहि विरति जबि
कहीयहि करम बनाइ५* ॥३॥
गाता अर गान:-
६अहंविरति चिद भास जुति
सो गाता पहिचान।
क्रिया विरति महि भास चिद
तां को गान बखान४ ॥४॥
गेय अर प्रमाता+:-
७करम विरति महि भास चिद१नहुवाण तोण चोटी तक।
२मैण पने दी बुज़धी, हअुण।
३ब्रिती विशिआण तक जावे।
४ब्रिती ळ।
५शबद (सपरस रूप) आदि जो विशे हन तिनां सारिआण नाल जे सहिज सुभाव बिरती विआपे (जाण
लगे) तां अुस ळ करम कहीदा है।
*पा:-करीअहि करम कमाइ।
६चिदा भास सहित जो अहं (मैण हां) दी ब्रिती (अंदर) है, अुस ळ गाता समझो। क्रिया ब्रिती विच
जो चेतन दा आभास है अुस ळ गान कहिदे हन।
+एथे केवल गेय पाठ चाहीए। प्रमाता नाल लिखंा लिखारी दी भुज़ल है।
७करम ब्रिती विच जदोण चिदा भास मिले सो गेय है।

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