Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६)४०३
५२. ।माही ने साका सुनाअुणा-जारी॥
५१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>५३
दोहरा: १खज़त्री झूठानद तबि, कहि नबाब के साथ।
-देखहु किम इह बोलते, डरति न जोरति हाथ ॥१॥
चौपई: बडे होइगे पिता समाना।
लाखहु लशकर कीनसि हाना।
नित अूधम को देश अुठावैण।
एह नहि कोणहूं सीस निवावैण ॥२॥
अबि पकरे बस आइ तुमारे।
छूट न जाहि मवास मझारे२।
इन को अपर नहीण अुपचारू।
करो हुकम किह३, करै प्रहारू- ॥३॥
हुते सभा महि खान मलेरी।
-हतहि- जानि बोले तिस बेरी४।
-बालक शीर खोर का दोश।
हान लाभ की इनहि न होश- ॥४॥
सुनि पापी तबि एव नवाब।
इत अुत देखन लगो शताब।
जे नर सनमुख किनहु न मानी।
-हम ते बालक होइ न हानी- ॥५॥
बहुर दाहिनी दिश जबि हेरा।
नीव ग्रीव करि थिर तिस बेरा।
बामे दिश तबि द्रिशटि चलाई।नहि किन मानी गिरा अलाई ॥६॥
पाछल दिशि खल बाणछत बेग।
गिलजा पशचम को युति बेग५।
१माही कहि रिहा है।
२छुज़टके किसे आकी थां नां चले जाण।
३किसे ळ हुकम करो।
४(इह) जाणके कि-(नवाब इन्हां ळ) मार देवेगा-अुस वेले बोले।
५मूरख (नवाब) पिछले पासे काहली नाल (तज़कके) चाहुंदा है (कि कोई नितरे तां) पज़छम दा इक
प्राक्रम वाला गिलजा (अुस ळ दिज़सिआ, जिस ळ कहिं लगा) ।बेग=काहली नाल। बेग=प्राक्रम,
अुज़दम॥। (अ) कई लोक बाणछत बेग अुस दा नां कहिदे हन। पर वाणछत संसक्रित पद है।