Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ४०३
५९. ।सतिगुरू जी दे शरीर दा ससकार॥
५८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>६०
दोहरा: साहिब भांा जोध पुन, सूरज मज़ल सुजान।
भाई रूपा आदि सिख, आनि मसंद महान ॥१॥
चौपई:थिरु समीप श्री तेगबहादुर।
श्री हरिराइ सभिनि महि सादर।
कहो१ अुठहु अबि खोलहु दारा।
जिम श्री हरगोविंद अुचारा ॥२॥
सवाजाम अबि सपतम दिन को।
करहु संभारनि गुरू बचन को।
चतर घटी के अंम्रित वेले।
लखि लीने सभि चिंन्ह सुहेले ॥३॥
सुनि शनान करि श्री हरिराइ।
चीर शरीर नवीने पाइ।
जपुजी पठि करि दार अगारी।
हाथ जोरि तबि बंदन धारी ॥४॥
अंतर ते शांकर खुल्हि गई।
वहिर इनहु ते धुनि सुनि लई२।
खोल्हे दार किवार हटाए।
लगे कंध सोण गुर दरसाए ॥५॥
पदमासन करि थिरे गुसाईण।
लोचन मुंद्रिति जोगी नाईण।
अंतर बरि करि जाइ निहारे।
सास न आवत देहि मझारे ॥६॥
जाइ तिनहु अभिबंदन करी।
दियो हुकम सभि को तिस घरी।
चंदन आदि समिज़ग्री भारी।
कीजहि तारी बिलम बिसारी ॥७॥
श्री हरिराइ सु भाना सादर।
सूरज मल श्री तेग बहादुर।
१भाव सारिआण ने किहा।२बाहर इन्हां ने ओह (संगली दे खुल्हण दी) धुनी सुण लई।