Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४१२
४४. ।श्री रामदास जी दा अदालत विच जाणा ते मुड़दी वारी शरधा दे बसत्र
ते कुरुज़ता अंब भेटा करना॥
४३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>४५
दोहरा: सुनि परवाना शाहु को,
सतिगुर करो बिचार।
-को लायक तहिण भेजिते,
बोलै१ सभा मझार ॥१॥
चौपई: अजर जरन अर चतुर महाना।
कहनि सुननि गति जानहि नाना।
जथा जोग प्रशनोतर करै।
कूरे बनहिण पुकार जि धरैण२- ॥२॥
सभि बिधि को लायक मन जाना।
रामदास गुन मनहु खग़ाना।
निकटि हकारो लीन बिठाइ।
हित सोण नीके तिह समझाइ ॥३॥
हे सुत! दिज खज़त्री कुलवान।
गए पुकारू जाति गुमान३।
हम को देखि सकहिण नहि सोइ।अज़गानी मति मूरख होइ ॥४॥
बहु पुरि के मिलि गए फिरादी।
मतसर करि मिथा अपवादी४।
बीच कचहिरी के संबाद।
कहि कहि जीतहु धरि अहिलाद ॥५॥
जिमि बूझहिण तिम देहु जबाब।
करहु न डेरी जाहु शिताब५।
सुनति खरे हुइ बिनती ठानी।
हे सतिगुर! सभि मति गुन खानी ॥६॥
तुमरे प्रेम बिना कुछ आन।
१जो बोलंा जाणे।
२पुकार करन वाले झूठे पै जाण।
३जात दे गुमान वाले।
४झूठे निदक ईरखा कर रहे हन।
५जलदी।