Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ४१०

५१. ।मसंदां दी खुटिआई॥
५०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ५२
दोहरा: सिख अनगन समुदाइ है, करति सुधासर कार।
पके पजावे ईणटका, आन ताल पर डार ॥१॥
चौपई: पाकी चिनिबे लगे सुपान।
सौणपी कार मसंदन मान।
जो धन देश बिदेशन आवै।
आदि बिसाखी जितिक चढावैण ॥२॥
सरब मसंद संभारन करैण।
खरचहि जहां काज बन परै।
सभि संगति ते सदन सिधारैण।
ले गुर कार आनिबो धारैण१ ॥३॥
कारीगरि आदिक समुदाइ।
जहां खरच देनो बनि जाइ।
सरब थान सो दैबो करैण।
देग आदि महि खरच बिचरैण ॥४॥
आमद खरच संभारति सारो।
आइ अुपाइन अनिक प्रकारो।
ब्रिंद चिनहि घर२ ईणट सुधारहि।
चहित जु संगति तिन ढिगडारहि ॥५॥
बहिलो आदिक सिख समुदाइ।
लगे पजावन३ ईणट पकाइ।
जो जो हित करि कार करंता।
सो सो निरमल रिदा बनता ॥६॥
करहि कामना जस जस मन महि।
पुरहि सेव सर४ केतिक दिन महि।
जो सकाम हुइ, बाणछति पाइ।
जो निशकाम रिदा बिमलाइ५ ॥७॥


१भाव लिआअुणदे हन।
२घड़के (अ) घर।
३आविआण दीआण।
४पूरन करदी है सरोवर दी सेवा।
५अुज़जल करदा है।

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