Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६)५३
६. ।पहाड़ीआण ने सूबिआण अज़गे मिंनतां करनीआण॥
५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>७
दोहरा: भीमचंद कर बंदि कै भनो सकल अहिवाल।
तुम मालिक हमरे सदा करहु आप प्रतिपाल ॥१॥
चौपई: श्री नानक गादी पुर बैसा।
हुकम चलावै सुरपति जैसा।
अबि तिस ते कीजै रखवारी।
नतु दै है गिर दून अुजारी ॥२॥
राज अकारथ हमरो करो।
लूट कूट बिन दुतिय न धरो१।
लरि कै बहुत काल हम हारे।
हुइ लचार सभि इतहु पधारे ॥३॥
अबि लशकर जे पठहु बडेरा।
तोप जंबूरे साज घनेरा।
अलप चमूं ते काज न सरै।
तिस को त्रास गुरू नहि धरै ॥४॥
गहि लीजै कै रण महि मारो।
तौ आपनो सभि काज सुधारो।
सुनि नुरंग मन भयो हिराना।
-जिस ने एव करन को ठाना ॥५॥
सो थोरनि ते किम सधि आवै२।
मारन मरन जिसै मन भावै।
पैणडखान बाननि सोण घायो।
लरिकै खान वजीद पलायो ॥६॥
सैदबेग अरु सैदेखान।
बने मुरीद पीर को मानि।
सवा लाख सैना भजि आई।
अधिक समाज लुटाइ बिहाई३ ॥७॥
अस नहि होइ फतूर अुठावै।
१दूजा कंम नहीण करदा।
२ठीक होवे।
३दौड़ गई।