Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ(राशि ७) ४१९
५३. ।लला बेग बज़ध॥
५२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>५४
दोहरा: रोदति शोकति हेरि करि,
हुतो मुसाहिब पास।
गुल खां नाम पठान को,
बोलो सुमति प्रकाश ॥१ ॥
भुजंग छंद: ललाबेग! शोकं न कीजै सुजाना।
समो जंग को जानि लीजै महाना।
फते होइ कै हार एको सु पावै।
लरैण बीर सारे इही रीति भावै ॥२॥
तजै जंग जोधा बुरी बात होवै।
दुहूं लोक को मोद, तारीफ१ खोवै।
बडे आप दाना कहै कौन सानो?
भली बात जेती सभै बुज़धि जानो ॥३॥
रची आप मौला बनै अज़ग्र सोई।
सहैण सीस सारे न मोरै सु कोई।
कहां होति रोए मिटै नांहि कैसे।
लरो अज़ग्र है चढे आप जैसे ॥४॥
हजो२ न करैण तोहि तारीफ सारे।रखो लाज आछै, करो नांहि टारे।
गुलखान के बैन जाने सुजाने३।
ललाबेग ने शोक तागो महांने ॥५॥
करो अुतसाहं रिदै धीर धारे।
गुरू संग चाहै -भिरोण जंग भारे-।
हुतो फैग़ खां पास दीनी दलेरी।
अहैण प्राण जौ लौ सुनो बात मेरी ॥६॥
गुरू को गहैण कै हतैण शसत्र मारैण।
तबै शाहु के पास आपा दिखारैण।
नहीण तो इहां बीर खेतं मझारा।
१जस।
२निदा।
३सिआणिआण वाले।