Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ४१९६०. ।रामराइ लाहौर ळ॥
५९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>६०
दोहरा: पुन केतिक दिन बित गए,
हठ ते फिरो सुभाइ।
बडता पित की सिमरि अुर,
मिलनि चाहि अुपजाइ ॥१॥
श्री सतिगुर निज पिता को,
क्रौध सुनो दुख पाइ।
-कहां बात बिप्रै भई-,
निस दिन बहु पछुताइ ॥१॥
चौपई: -अबि करतज़ब अहै का मोही-।
रिदे बिचारति संकट होही।
-जावौण पित समीप इक वारी।
बसावौण कर जोरि अगारी- ॥३॥
इम निशचे करि कै बहु भाइ।
गुर सुत रामराइ पछुताइ।
नौरंग संग कहो बच ऐसे।
अबि रुखसद दिहु जैसे कैसे ॥४॥
शाहु न मानै कहै बनाइ।
तुमरे दरशन की मुझ चाहि।
रहहु कितकि दिन इहां गुजारहु।
मोहि हरख करि पुनहि पधारहु ॥५॥
चतुरि पंच दिन बूझति रहे।
रुखशद करनि शाहु नहि कहे।
तबि श्री रामराइ अकुलाए।
-हमहि ग़रूर बनहि तहि जाए- ॥६॥
इक दिन शाहु शिकारसिधायहु।
बोलि गुरू सुत संग रलायहु।
जहां शिकारगाह तहि गए।
जीव घात हित बिचरति भए ॥७॥
तबि श्री रामराइ रिस आई।
महां घटा घन की घुमडाई।