Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 426 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४४१

४७. ।मेदनी दी आद कथा, मधु कैटभ दा युज़ध॥।
४६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>४८
दोहरा: स्री नारायण* हरि प्रभू, सेज शे ते पाइ।
सुपति जथा सुख काल चिर१, जिह जोगी जन धाइ ॥१॥
चौपई: परम सरूप तेज अतुलत है।
बीज भूत सभि जग को अतिहै२।
निज महिण धरतो शकति अनत।
स्रिशटि सथिर संघार करंत३ ॥२॥
परम पुरख परमेशुर पूरन।
अनअुपमा गन शज़त्र चूरन४।
निरभै अनणद रूप परमातम।
होति चराचर५ सभि को आतम ॥३॥
शामल अलसी कुसम समान।
म्रिदुल मधुर मुख ते मुसकान।
अयुत बिलोचन मुज़द्रित करे।
रतन तलप६ पर श्री प्रभु थिरे ॥४॥
चहुणदिशि महिण पसरो जल जाला।
अपर न कुछ पज़यति किति भाला७+।
करता पुरख इज़छ अनुसारे।
कमल नाभि भा युत बिसथारे८ ॥५॥
तिस तेब्रहमा अुतपति होवा।
नेत्रनि ते जल जहिण कहिण जोवा।


*नारायण नाम आम करके विशळ दा ही है। पौराण विच अनेक वितपतीआण इस दीआण हन पर
आम प्रसिज़ध इह है-नार = जल, आयण = घर। = जिस दा सभ तोण पहिलां अयण (अधिशान)
जल होइआ सी। यजुर वेद अर शतपथ ब्राहमण विच इह पद विशळ ते प्रथम पुरख दे अरथां
विच आइआ है।
१जो शे नाग दी सेजा पर पैके सौणदे हन चिर काल तज़क सुख पूरबक।
२जो वज़डा मूल तज़त सारे जगत दा है।
३दुनीआण दी अुतपती पालंा ते नाश करदा है।
४अुपमा तोण रहित ते समूह शज़त्रआण दे चूरन करन वाला है।
५चर+अचर = जड़्ह चेतन।
६रतना (जड़ी) सेज।
७ढूंडिआ होइआ।
+पा:-काला।
८नाभी दा कमल विसतार सहित होइआ।

Displaying Page 426 of 626 from Volume 1