Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ४३९
५७. ।सिरं्हद वासी दाल दास ळ वर। ग़फरनामा॥
५६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>५८
दोहरा: बिदति भए श्री सतिगुरू, बसि दीने के ग्राम।
हिंदू तुरक बखानते, लै लै करि प्रभु नाम ॥१॥
निसानी छंदु: जिम तुरकन को श्राप भा, हित राज प्रतापा।
अुजरै शहिर सिरं्हद बड, भे जिस महि पापा।
सीतलपुरी१ महंत इक, बहु अग़मत वंता।
धीरज धारी संत शुभ, सतिनाम जपंता ॥२॥
चेला तिसी महंत को, इक दालपुरी है।
अग़मत जुति बासा कियो, सीर्हंद पुरी है।
सुनी गुरू की बारता, पुरि स्राप अुचारा।
-बुरा बहुत पुरि को भयो, जहि बास हमारा ॥३॥
गुर को कहो न हटहि किम, सुर असुरन पासू।
नर बपुरे की शकति का, कहि मोरहि तासू।
किम करि हौण मैण पुरि भलो, जहि खान रु पाने।
करौण बिनै प्रभु अज़ग्र जे, सुनि लेहि जि माने ॥४॥
इम बिचार करि चलि परो, सुनि करि गुर दीने।
गमनोण पंथ अुलघ करि, पहुचो चित चीने।
बूझो जाइ शमीर को, तिन पुछि पहुचायो२।
हाथ जोरि जुति प्रेम के, पग सीस निवायो ॥५॥
भुजंग छंद: नमो पाद कंजं गुरू रूप सोहे।
धरो ईश औतार को लोक मोहे।
नहीण जानि साकैण प्रभू रूप तेरो।
सदा जै सदा जै क्रिपा धारि हेरो ॥६॥
पुरा रूप बेदीन के बंस होए।
गुरू नानकं आदि भे लोक जोए।
दसोण देह सोई महाराज धारे।
अुधारेघने को गने पुंज तारे ॥७॥
करो पंथ बीरान को सिंघ होए।
महां पाप कारीन के मूल खोए।
१सीतल नाम है ते पुरी संनासीआण दी इक संप्रदा है।
२तिसने (गुरू जी तोण) पुज़छके (हग़ूरी विच) पुचाइआ।