Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ४४९
५८. ।ग़फरनामा भेजंा। दीनिओण चड़्हना॥
५७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>
दोहरा: इस प्रकार लिखि सतिगुरू तुरक तरक१ समुदाइ।
पीछे अमल तरीफ लिखि२ जिस पठि अुर जर जाइ ॥१॥
निशानी छंद: करति रहो लखि भली जो, अरु शर्हा चलाई।
निज तोरा३ करि जहि कहां, सभि ते करिवाई।
-करति रहो मैण अमल शुभ-, इम धरैण गुमाना।
-नहि सग़ाइ दोग़क बनै-, इह निशचै ठाना ॥२॥तिस ही को खंडन करो, लिखि लिखि गुर पूरे।
सकल जनाई तुरक को हुइ नरक ग़रूरे।
साहिबग़ादे चार हूं छल करि मरिवाए।
महांपाप इह तोहि सिर, करि अहिद मिटाए ॥३॥
अवरंग पदरहि४ पदर५ को, तिस पदर६ बहोरी।
लिखी सपत अजबा तबै*, सो हैण कित ठौरी७।
मरे खाक महि मिल गए, को इक दिन बाजी८।
हार चले कर झारि करि, साची लाखी पाजी९? ॥४॥
इज़तादिक लिखि बैत महि, शुभ गिरा बनाई।
जिस को पठि म को करै, तूरन मरि जाई।
तिस पशचाती सभिनि ते, पलटा हम लै हैण।
मारि छार करि तुरक गन, सभि राज मिटैण हैण ॥५॥
लिखि इकाणग ओणकार को, मंतर सतिनामा।
वाहिगुरू जी की फते, पुनि लिखि अभिरामा।
करि इकज़त्र कागत भले, समरथ सभि भांती।
१तुरक वंने सारीआण दलीलां।
२दलील दे मगरोण (शुभ गज़लां ते) अमल करन दी महिमां लिखी।
३हुकम।
४शाह जहां।
५जहांगीर।
६अकबर।
*पा:-अजबात है।
७भाव इह है कि तेरे वज़डिआण बाबत अजीब हालात लिखे हन, ओह दज़स तेरे वज़डे हुण किज़थे
हन?।शाह जहां, जहांगीर, अकबर इह त्रै ते अकबर तोण पिज़छे तैमूर तक सज़त पीड़्हीआण हन।
३+७।
८कोई दिन दी (बाग़ी=) खेड है।
९हे पाजी! की तूं इह सज़ची समझी है? (अ) इह पाजी (झूठी) है तूं सज़च (किअुण) लखी है।