Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५९

ते दसवाण चौथी विच। इस तोण इह बी समझ पैणदी है कि श्री गुर नानक
प्रकाश ते श्री गुर प्रताप सूरज ळ इको ही कथा कहि रहे हन। गुण जो गिंे
हन एह हन:-
१. चिज़त ळ टिकाअुण वाली। ७. त्रै ताप हरता (दुख नाशक)।
२. नितधन दी दाती। ८. सुज़खां दी दवाई रूप।
३. कीरत (भगती) दी दाती। ९. अजर ळ पचा देण वाली।
४. अहं ळ साड़न वाली।१०. ब्रिंद गुणां दी दाती, विशेश
५. सतिगुराण विच शरधा दी दाती। करके आनददाय मुकती दी
६. दिल दी शुज़धी दी दाती। दाती।
एह दसे गुण दसां गुरू साहिबाण विच हन ते अुन्हां दी कथा इन्हां दी दाती
है।
।खालसा-कलप ब्रिज़छ दे रूपक विच॥
कबिज़त: श्री गुरू जगत पति जगत सदन मांझ
हिंदवान अजर बिराजबे की लालसा।
सूरतं बीज ते अंकूर भयो महां जुज़ध
अंम्रित को देनि तुचा ब्रज़धति निरालसा।
सद गुन दल ते सदल भए भूप डाल
भजन कुसम फल गान ततकालसा।
पर मत कालसा दरिज़द्र खल दालसा
प्रताप रिपु घालसा कलपतरु खालसा ॥४१॥
पति = मालक (अ) पत = इज़ग़त। सदन = घर।
हिंदवान = हिंद दे ओह वासी जो हिंद ळ अपणा वतन अपणे धरम
असथानां दा थाअुण मंनदा ते पुरातं सदेशी सज़तता दा मां रखदा है। हिंदी या
हिंदू।
अजर = जिसळ बुढेपा ना आवे। सदा प्रफुलत। मुराद है जिसदा तेज,
प्रताप ते हसती सदा रहे। (अ) अजर दा अरथ विहड़ा बी है, अुह बी एथे लाअुणदे
हन।
बिराजबे = वसाअुणा। वसदीरखंा।
लालसा = इज़छा, चाहना। तुचा-चमड़ा, छाल।
ब्रिज़छ दे मुज़ढ अुते जो छाल हुंदी है अुस ळ तुचा आखदे हन।
।संस: तच॥ ब्रज़धति = वधदा है।
निरालसा = निर+आलसा = आलस तोण हींता। शीघ्रता, छेती।
सदगुण = स्रेशट गुण, दैवी गुण, सति संतोख आदी।
दल = पज़ते। सदल = स+दल। स = समेत। फौजाण समेत।
दल = फौज।

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