Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) ४६८
६१. ।रातीण जहांगीर ळ शेराण ने डराइआ॥
६०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>६२
दोहरा: श्री हरि गोविंद ब्रिज़ध को, देखि रहे हरखाइ।
कहहु सुधासर सुधि सकल, सिख संगतिसमुदाइ ॥१॥
चौपई: प्रिय पुज़त्रा जु प्रतीखति -आवैण१-।
अस मम मात सनेह अुपावै।
सकल कुशल तिन अहै सरीर?
पिखनि चहति मम को युति धीर ॥२॥
किम आगवन आप को भयो?
कायां निबल खेद मग लयो।
असु पर चढनो चलनि हमेश।
हुयो होइगो श्रमति विशेश ॥३॥
श्री नानक के हेरनि हारे।
बडी अवसथा बल तनु हारे।
बैठि रहनि ही तुम बनि आवै।
दरशन ते गन दोश मिटावै ॥४॥
बचन तुमारे सुधा समान*।
श्रवन करे सुख लहैण महान*।
क्रिपा सहत कोमल गुरु बानी।
सुनति अनदति आप बखानी२ ॥५॥
छोरि सुधासर को जिम आए।
कुशल छेम सोण बसहि तिथाए।
सरब ओर ते संगति आवै।
मुदति रिदे अंम्रितसर नावै ॥६॥
हरिमंदिर महि जाहि बहोरी।
परम प्रेम ते अरपि अकोरी।
सिमरति हैण इक दरस तुहारा।
करहि प्रतीखन भाअु अुदारा ॥७॥
१पिआरी पुज़त्र वाली माता जी अुडीक रही है साडे आवं ळ।
*इक लिखती नुसखे विच इन्हां दोहांतुकाण दा पाठ नहीण है, ते चौपई पूरी करन लई अुस नुसखे
विच अगलीआण दो तुकाण तोण अज़गे इह पाठ है:-कहति ब्रिज़ध सुनीऐ गुन मंदिर। अतिशै प्रेम
मात रिदअंदर।
२क्रिपा वाली कोमल गुरबाणी सुण के (बुज़ढा जी) आप अनद होके दज़सं लगे कि।