Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४७६

५१. ।बावली रचंी। श्री रामदास जी दे संबंधीआण दा मेल॥
५०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>५२
दोहरा: धरम धुरंधर१ अमर गुरु, सदा चहिति अुपकार।
रचिबे तीरथ बावली, सिज़खनि हेतु अुधार ॥१॥
चौपई: इक दिन सभा मझार अुचारा।
इहां बावली लगहि अुदारा।
सिख संगति दरशन को आवहिण।
सभि मिलि गुर तीरथ जल नावहिण ॥२॥
इम कहि सतिगुर आइसु दीनसि*।
लिखहु हुकमनामे हित चीनसि२+।
तीरथ की तारी गुरु करैण।
हुइ निहाल सेवा हितधरैण ॥३॥
पारो३ ने लिखि सकल पठाए।
पुरि ग्रामन ते सुनि सिख आए।भयो मेल संगति को भारो।
जथा शकति लै आवहिण कारो ॥४॥
दरशन हेतु चौणप चित धारे।
सेवा ठानहिण गुरू अगारे।
मिलि गुर पग को बंदन ठानहिण।
धरहिण भाअु अपनो हित जानहिण ॥५॥
श्री गुरु ने शुभ दिवसि निहारा।
निकसे वहिर अनद अुदारा।
सभि संगति को संगि सु लीनि।
बहु मिशटान मंगावनि कीनि ॥६॥
थल सुंदर पिखि पास बिपासा।
ढिग पुरि गोइंदवाल प्रकाशा।
मंद मंद पद सुंदर धरिहीण।
संग संगतां भीर निहरिहीण ॥७॥


१धरम दे आचारय, धरम विच सभ तोण मुहरे।
*पा:-दीनी।
२भला जाणके।
+पा:-चीनी।
३भाई पारो जुलका।

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