Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४९५

५३. ।माई दास वैशनो। मांकचंद।॥
५२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि१ अगला अंसू>>५४
दोहरा: अति आतुर होइ दरस को,
माई दास पयान।
पंथ चलति बरु शीघ्र ते,
होवति श्रमति महान ॥१॥
चौपई: निस बिसरामति दिवस पयानहि।
क्रिशन सतिगुरू* नाम बखानहि।
चित महिण चितवति आवति सोई।
-पारब्रहम गुर अमर जि होई ॥२॥
मो कहु रूप शाम दिखरावहिण।
चतुर भुजा१ बनमाल२ सुहावहि।
मुर अुर की शरधा करि पूरी।
दरसौण सभि ते मूरति रूरी- ॥३॥
केतिक दिन महिण पहुणचो आइ।
जिह ठां गोइंदवाल सुहाइ।
प्रथमहि गयो देग के थाना।
करो जाचि कै भोजन खाना ॥४॥
त्रिपत होइ पुन अंतर गयो।
मन बाणछति तस३ दरशन भयो।
जिह सरूप की अुसतति बेद।
करति रहति नहिण पावति भेद ॥५॥
कबिज़त: सूरज समान कोट प्रभा है महान तन४,
शोभन+ है सीस, दुति बाहुन अजान की५।
कंबु ग्रीव६, लोचन तिरीछे तीछे७ बान मानो,


*पा:-सु सतिगुर।
१चार बाहां।
२वैजयंती माला।
३तिस ळ।
४करोड़ां सूरजाण वाणग शोभा बड़ी हैजिन्हां दे तन दी।
+पा:-सोभति।
५लमीआण गोडिआण तक बाहां।
६संख वरगी गिज़ची।
७अज़खीआण दे कोने टेढे तिज़खे।

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