Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ५०९
५७. ।नाअू भोलू आदि सिज़खां प्रति अुपदेश॥
५६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>५८
दोहरा: नाअू भोलू जाति के, सेखड़ साध१ सुजान।
जज़टू भीवा जाति का, मूला पुरख महान ॥१॥
चौपई: चारहु मिलि श्री अरजन दारे।
आइ नमो कीनी हितधारे।
गुरू गरीब निवाज कि पास।
कर जोरति भाखी अरदास ॥२॥
बानी तुमरी अनिक प्रकार।
अुचरहु जुदो जुदो अधिकार।
जस अधिकार आपनो जाने।
कहो शबद को आशै माने ॥३॥
हम तो अपनो जिम अधिकार।
नहीण पछान सकहि निरधारि।
करम करनि के हैण अधिकारी।
कै अुपासना करहि बिचारी ॥४॥
गान काणड के कै अधिकारि।
सतिगुर! हम सोण करहु अुचार।
श्री अरजन सुनि बाक बखाने।
अपनि परखना इस बिधि ठाने ॥५॥
गुर बच सुनि जबि अुर महि धरे।
करम शुभाशुभ निरनै करे।
चाहनि लगो करम शुभ करनि।
तअू जि बुरे करम को वशन२ ॥६॥
मिटति नहीण मन ते नित चाहै।
तौ अधिकार करम को ताहै३।
गुर सिज़खनि की सेवा लागे।
गुरबाणी सुनिबे अनुरागे ॥७॥
सने सने मन खोट निवारै।
१भले पुरश।
२दा सुभाव।
३अुसदा है।