Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५१२
५५. ।काबल वाली पतिब्रत माई॥
५४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>५६
दोहरा: कार होति निति बापिका, करहिण प्रेम सोण दास।
क्रिपा द्रिशटि जिस को पिखिति, तिस के गान प्रकाश ॥१॥
चौपई: लाइण ईणटका करदम१ करि कै।
चूना प्रिथम स नीक सुधरि कै।
पीसहिण चाकी महिण करि प्रेम।
सिर धरि करि गमनहिण हित छेम ॥२॥
किस को किम कोई नहिण कहै२।
आपे करन सेव शुभ चहैण।
इक आवहिण इक ले ले जाहिण।
कारीगर के ढिग पहुणचाहिण ॥३॥जोण जोण करहिण प्रीत सोण सेवा।
तोण तोण लखि सभि की गुरदेवा।
पूरहिण मनो कामना तिन की।
बापक जोति सभिनि महिण जिनकी ॥४॥
एक सिज़ख काबल महिण रहै।
पतीब्रता इसत्री जिस अहै।
पति महिण प्रेम जामनी दिन मैण।
फुरहि न अपर पुरश को मन मैण ॥५॥
तिह सिज़ख ने सिज़खी सु द्रिड़्हाई।
अपनि भारजा को सुखदाई३।
पतिब्रति ते तिह शकति बिसाला।
जहिण चाहै पहुणचै ततकाला ॥६॥
कोस हग़ारहुण घटिका मांही।
पहुंचति देर लगहि जिस नांही*।
इज़तादिक शकती कहु धारति।
सदा प्रेम पति सोण प्रतिपारति४ ॥७॥
१गारा।
२किसे ळ किसे तर्हां कोई कहिणदा नहीण।
३आपणी इसत्री ळ सुखदाती (सिज़खी द्रिड़ाई)।
*देखो श्री गुर नानक प्रकाश अुज़तरारध अधाय ३९ अंक ६० दी हेठली टूक।
४पालदी है, भाव करदी है।