Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ५२०

५६. ।सिज़खां दा प्रशन कि गज़दी ते स्री रामदास जी जाण कि रामा जी बैठंगे॥
५५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>५७
दोहरा: श्री सतिगुर अुपकार हित, तीरथ रचो बिसाल।
करी टहिल जिनि प्रेम धरि, से सभि करे निहाल ॥१॥
चौपई: सतिगुर पौर मुकति को दारा।
धरि प्रतीत इमि ठानति कारा।
राखो खोल मुकति* भंडारु।
जोण जोण बखशति होति अुदारू ॥२॥
श्री गुर अमर, कि देव तरोवरु१।
बड प्रताप बिसतार बरोवर२।
आल बाल३ सतिसंगति सोहै।
शुभ गुन गन दल४ संकुल५ सोहै ॥३॥
बिशियन ते बिराग जिस छाया।
ब्रहमगानी देवन को भाया६।
स्री सतिगुर पग पंकज सेवा।
इही बीज अुपजनि शुभ भेवा ॥४॥
भगती तुचा७ करति द्रिड़ राखा।
जहिण कहिण सिज़खी दीरघ साखा८।
सज़तासत बिबेक९ शुभ सुमनस१०।चाहति रहति भगति गनसु मनस११ ॥५॥
जाचक सिज़ख अनेक जि आवति।
मनोकामना ततछिन पावति।
जिन के बडे भाग जग जागे।

*पा:-भगति।
१कलप ब्रिज़छ।
२(ब्रिछ दे) विसथार वाणू बेड़ा श्रेशट प्रताप है।
३ब्रिछ दा दौर, घेरा।
४पज़तीआण।
५समूह, सारे, घणे।
६ब्रहम गिआनी रूपी देवतिआण ळ चंगा लगणा (फल)।
७छिल।
८टाहणीआण।
९सज़त असज़त दा विचार।
१०चंगे फुल हन।
११अपने मन विच सारे भगत चाहुंदे रहिणदे हन।

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