Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ५२७

६०. ।मोहण आदि सिज़खां प्रती अुपदेश॥५९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>६१
दोहरा: गंज१ बसै लवपुरी के, मोहण आलम चंद।
जोधा जज़लहु२ तुलस पुरि, चारहु बडे मसंद ॥१॥
चौपई: श्री अरजन की सेवा करिहीण।
आनहि धन सिज़खन महि फिरिहीण।
गुरु बिराटका३ खाहि न आपि।
जानहि -इह बिसाल है पाप ॥२॥
मिलहि अहार बिखै जिम माखी।
बमन४ करावहि रहहि न राखी५।
तोण गुर के धन करे दुरावनि।
सरब पदारथ करैण नसावनि ॥३॥
अरु सरीर को दे करि छीन६-।
यां ते नहीण छपाइ प्रबीन।
सो चारहु इक दिन रथ चढे।
आइ दरस हित आनद बढे ॥४॥
केतिक पंथ जबहि चलि आए।
निकसो एक सरप अगवाए।
फं बिलद को करि कै अूचा।
सनमुख रथ के आइ पहूचा ॥५॥
करी अपर दिशि रथ तिस हेरि।
तित के समुख भयो अहि फेर।
मोहण देखि अुतर तबि परो।
इक घट ले अहि आगे धरो ॥६॥
कहो दरस गुर को जे चाहे।
तौ प्रवेश करि इस घट माहैण।
पंनग बरो बीच ततकाल।१बाग़ार दा नाम सी।
२भाई जज़लो।
३कौडी।
४अुलटी, के।
५(अंदर) रखी होई रहिंदी नहीण।
६नाश कर दिंदी है।

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