Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ६८

किम गुर निकटि रहे सुख पाइ।
भे गुरबखश सिंघ++ किस भाइ।
कहहु चरिज़त्र प्रिथम इन केरा।
पुन अुचरहु इतिहास बडेरा ॥३२॥कवि इम सुनि श्रोतनि ते बानी।
रामकुइर की कथा बखानी।
कुछक चरिज़त्र कहौण तिन केरा।
पठति सुनति सुख देति घनेरा ॥३३॥
मन वाणछति फल प्रापति होवै।
संचति पाप१ सभिनि को खोवै।
बिमल२ मती हुइ लहि सुखधाम।
लिव लागे सिमरन सतिनाम ॥३४॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथे प्रथम रासे इतिहास कथन प्रसंग
बरनन नाम दुतियो अंसू ॥२॥


१इकज़ठे होए होए पाप।
२अुज़जल।

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