Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ६६७. ।दिज़ली वाले सिज़खां नाल बचन॥
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दोहरा: संगति ब्रिंद बिलोकती,
चहु दिसि ते बहु आइ।
बनजारे के सहित ही,
दिज़ली ते सिख आइ ॥१॥
चौपई: अरपि अकोर भयो तबि ठाढो।
गुर सरूप पिखि आनद बाढो।
श्री मुख ते शुभ बाक अुचारे।
कहु गुर पारे सिख बनजारे ॥२॥
किस प्रकार सतिगुर ससकारे।
किह सथान महि राख सुधारे१?
सुनि बिसमो -मुझ बिना बताए।
जानि लीनि कारज करि आए- ॥३॥
बोलो बिनै सहित हरखाना।
जथा भयो रावर सभि जाना।
तअू सभिनि के हेतु सुनावनि।
बूझहु मोहि कथा गुर पावन ॥४॥
अधम नुरंगे कारन कीना।
पुन डिंडम पुरि फेर सु दीना।
-इन को सिख सादक नर जोइ२।
धर को ले ससकारहि सोइ- ॥५॥
सुनो सभिनि करि त्रास बिसाला।
कोइ न बोलि सको तिस काला।
-हम हैण सिज़ख- न किनहु बतावा।
दबक रहे निज निज घर थावा ॥६॥
डरति रिदे -को दे नबताइ।
शाह बंधि३ हम दे मरिवाइ-।
दुरि दुरि गए४ आपने घर महि।
१भसम किज़थे संभाली है।
२सिदक रज़खं वाला।
३बंन्ह के।
४छुप छुप गए।