Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ६९
३. ।भाई रामकुइर प्रसंग॥
दोहरा: हसतामलक१ समान अुर,
जिन के दिढि ब्रहगान।
श्री बुज़ढा साहिब भए,
नमो बंदि करि पान ॥१॥
चौपई: गुर सिज़खी की अवधि अधारा२।
जिम सभि जल की सिंधु अपारा।
माततंड३ जिम तेज प्रचंडहि४।
जथा अखंडल५ भूतल खंडहि६* ॥२॥
जथा छिमा की छौंी७ अहै।
बायू महिद बेग की लहैहै८।
सहनशील सौणदरज सूरता।
प्रभू बिशन है सभै पूरता९ ॥३॥
सु प्रकाश१० की अवधि मयंका११।
जथा दुरग१२ की दीरघ लका।
नागनि शेश, बाशकी सरपनि१३।
तन हं तजिनि होति सभि अरपनि१४ ॥४॥
१हज़थ ते धरे आणवले वाणू।
२अवधी = अुज़ची तोण अुज़ची
(सिज़खी दा) आधार = आसरा। (अ) भाव गुरसिखी दा आधार सिज़ख है, पर सिखां दी
अवधी भाई बुज़ढा जी हन।
३सूरज।
४त्रिज़खे तेज (दी अवधी है)।
५इंद्र।
६प्रिथवी ळ खंडहि (फते करन वालिआण भाव राजिआण दी अवधी) है।
*पा:-भूति अखंडहि।
७धरती।
८(जिवेण) महिद वायू (त्रिज़खी अन्हेरी) वेग दी (अवधी) है।
९प्रभू बिशन विच सहनशील सुंदरता, सूरमता दी पूरती (अवधी) है।
१०ठढे प्रकाश (जमाल) दी।
११चंद्रमा।
१२किल्हिआण।
१३सज़पां (दी अवधी) शेशनाग ते बाशक नाग। (अ) नागां दी अवधी वाशक नाग ते सज़पां (दी
अवधी) शेशनाग।
१४तन दा हंकार छज़डं विच सभि कुछ अरपन हो जावे, भाव अरपन दी अवधी हंता दा ताग है।