Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) ७४
८.।तानेशाह दे नाल वैर दा प्रसंग॥
७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>९
दोहरा: सुनति क्रिपालु१ क्रिपाल जुति२,
दिलि वालिन की गाथ।
मूढ नुरंग प्रसंग को,
पुन बूझो तिन साथ ॥१॥
चौपई: ताने शाहु जु दज़खं केरा।
कोण करि भयो तांहि संग बैरा?
किस कारन ते कीनि चढाई?
तिह प्रसंग पुन देहु सुनाई ॥२॥
बंदि हाथ बोले दिलवाली।
सुनहु प्रभु! तुरकेश कुचाली।
महां बिकीमत एक जवाहर।
तानेशाह निकट दुति ग़ाहर ॥३॥
छाप आपनी महि सो राखति।
तिस लैबे हित इह अभिलाखति।
एक जौहरी खोजो ऐसो।
परखन महि को नहि तिस जैसो ॥४॥
करति पारखा३ ब्रिंद जवाहर।
जानति सभि की कीमति ग़ाहर।
तिह सोण कहो -बनहु बापारी।
गमनहु दज़खं कीजहि तारी ॥५॥
मुलाकात करि ताने शाहू।
पिखहु जवाहर तिस कर४ मांहू।
परखहु केतिक कीमत केरो।
निज बुज़धी करि नीके हेरो- ॥६॥
चलो जौहरी आइसु मानी।अधिक दरब ले तारी ठानी।
सगरो मारग अुलघो जाइ।
१भाव गुरू जी ने।
२मामा क्रिपाल जी संे।
३प्रीखा।
४हज़थ।