Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) ७३
९. ।पैणडा खान बज़ध॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ४ अगला अंसू>>१०
दोहरा: इस बिधि हति कै खान सर रहो रिदै पछुताइ।
आदिक दीना बेग ते१ देखति रण बिसमाइ ॥१॥
भुजंग छंद: रहो ान ठांढो बडी लाज पाए।
पिखैण बीर सारे जथा जंग दाए।
दुअू बीर बंके अरीले बिसाले२।
दुअू सैन सामी कुदंडं संभाले ॥२॥
दुअू तेज घोरे करे ओजवारे।
दुअू तीर बिज़दा रूरी करारे३।
दुअू जंग जेता कर जीत आसा।
दुअू जंग को४ पुंज देखैण तमाशा ॥३॥
गुरू जी तबै फेर नीला ंदायो।
खरो खान के साथ अूचे अलायो।
हतैण तीर तोही दिजै वार मेरा।
करो ओज जेतो पिखो सरब तेरा ॥४॥
सुने खान बोलो लिजै वारि दोई।
जथा मैण करे आप के साथ सोई।
गुरू फेर बोले नहीण दोइ ले हैण।अहै एक नीको५ कहैण बीर जे हैण६* ॥५॥
दोहरा: फिरकतवार सु मुरदमहि, होति हरामै खोर७।
यां ते पलटा हम करैण, इक खतंग कहु ओरि ॥६॥
साबास छंद: इम कहि फेरिय। गुरहय प्रेरिय।
बन सवधानहि। गहि इक बानहि ॥७॥
१दीना बेग आदिकाण तोण लैके।
२बहुत अड़न वाले।
३तीर विदिआ दे करड़े रूर वाले।
४दोहां दे जंग।
५इज़को चंगा हुंदा है।
६जो सूरमे हन।
*सौ सा: दा पाठ है:-नेकी बार यक बहादर = बहादराण विच इक वार नेकी वारा (समझीदा) है,
।वार दे अरथ हन = आपणी वारी सिर शज़त्र ळ मारन दा जतन॥।
७मरदां विच फिरकतवार हराम खोराण (दा वार) हुंदा है ।फिरकत वार = वार दिते बिनां या
आपणी वारी तोण बिनां वार कर देणा॥।