Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) ७४

तिन संगी सिख मोहि हटायो१।
इत गुर गए, न देहु बतायो२।
मुसलन को लशकर इत आवै।
भौणक चौणक आपे चलि जावै- ॥३५॥
इम तिस ने सभि बात बताई।
सुनि श्री प्रभु कहि तिह न पचाई३।
कुल जुति अफर अफर मरि जै है।
इस कारन ते म्रितु को पै है ॥३६॥
गुर बच ते सो आफर मरो।
अबि लौ तिह कुल सुनिबो करो४।
जबि तिन की म्रितु हुइ नियराई।
अफरै तीन दिवस मरि जाई ॥३७॥
अफरे जरहि चिखा के बीच।
लीनो स्राप बाद ही नीच।
चले जाति सतिगुरू अगारी।
पीलुनि तरु करीर जहि भारी ॥३८॥*एक ग्राम आयो पुन और।
रूपा खज़त्री बसि तिस ठअुर।
मिलो एक गुड़ रोड़ी लै के।
बंदन करी थिरो अगवै कै ॥३९॥
गुर बिलोकि बोले तिस बेरा।
कहु रूपा करीअहि इत डेरा?
लरहि तुरक सोण इस थल थिरैण?
आवति रिपुनि प्रान को हरैण? ॥४०॥
सुनि बोलो नहि पुजि है डेरा५।
तुमरो तुरकनि संग बखेरा।
लशकर आइ पकर करि लेहि।


१भाव स्री गुरू जी दे नाल दे सिंघां ने मैळ मन्हे कीता सी (इह जुगराज कहिदा है)।
२दज़संा नहीण।
३तिस ळ गज़ल नहीण पची।
४अुस कुल दी (गज़ल) सुणी है।
*इह प्रसंग साखीआण वाली पोथी दा है।
५आप दा डेरा करना (साथोण) नहीण पुज़जदा।

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