Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) ७४
८. ।श्री अंम्रितसर आए॥
७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>९
दोहरा: श्री हरि गोबिंद शाहु ले,
गमने गोइंदवाल।
पार बिपासा ते अुतरि,
संग लिए नर जाल ॥१॥
चौपई: प्रथम बावली जाइ शनाने।
कीरति श्री गुरु अमर बखाने।
सभि मिलि भज़ले साहिबग़ादे।
आए गुरु हेरनि अहिलादे ॥२॥
शाहु सहत श्री हरि गोबिंद।अरपन कीनो दरब बिलद।
म्रिदुल बखानि अधिक सनमाने।
बहुर चुबारे देखनि पाने ॥३॥
तहि पूजा करि के हटि आए।
चढो शाहु तबि बंब१ बजाए।
श्री हरि गोबिंद मिलि सभि साथ।
बूझे, कही चंदु की गाथ ॥४॥
जथा जोग कहि सभि हरखाए।
श्री गुरु अमर अंस समुदाए।
सभि ते ले आइसु गुरु चले।
पंथ तरन तारन के भले ॥५॥
डेरा आइ करो निज थान।
अुतरो जहांगीर सुख मान।
करि इशनान गुरू तबि तहां।
पित सथान करि बंदन महां ॥६॥
शाहु आनि धन भेट चढाइ।
बसे निसा बिसराम सु पाइ।
भई प्रात करि कै इशनान।
करी प्रणाम गुरू पित थान ॥७॥
डेरा कूच शाहु जुति भयो।
१नगारा।