Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ८०१०. ।प्रगट होण दे चिंन्ह॥
९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>११
दोहरा: मंत्र पढति करते हमन, करति धान दिन रैन।
करनि प्रशंशा, गुन कथनि, करहि सुनै नहि बैन ॥१॥
चौपई: करति सु बिधि प्रयोग१ गुर पूरे।
सरब प्रकार तपे तप रूरे।
बीत गए नअु मास करंते।
दसवेण बिखै अधिक थितवंते२ ॥२॥
फागन मास तथा बिधि करैण।
होमति चरू मंत्र को ररैण।
निस दिन बास सैल पर कै कै।
खान पान को संजम पै कै३ ॥३॥
जागति रहैण नीणद तजि दीनी।
एक अराधन पर मति भीनी।
अुसतति करति अनेक प्रकारा।
ब्रहम कवच४ को जाप अुचारा ॥४॥
चंडी पाठ जपहि बहु बारी।
नाम हग़ारहु करहि अुचारी।
छंद अचकड़े ग्रंथ मझारा५।
आदि मोहिनी छंद अुचारा ॥५॥
तिन महि भनहि नाम जे ब्रिंदा।
गुर कविता महि बने बिलदा।
सो सभि नाम रटहि बहु बारी।
नमो करनि तिन संग अुचारी ॥६॥
१विधी सहित प्रयोग।
२बहुत बैठंलगे।
३खान पान संजम दा पाके।
४दुरगा ते नावाण दा मंत्र। कहिदे हन कि इह ब्रहमां ने मारकंडे ळ दज़सिआ सी। इह अंगां दी
रज़खिआ करन वासते है। तंत्र शासत्राण विच सरीर दे अज़ड अज़ड अंगां दी रज़खिआ वासते अज़ड अज़ड
मंत्र पड़्हे जाणदे हन, जिन्हां ळ कवच आखदे हन।
५पारस नाथ ग्रंथ वल इशारा है जिज़थे अचकड़े छंद विच देवी दे नाम आए हन। अचकड़ा इक
छंद दा नाम है जिस विच चार रगण इक तुक विच हुंदे हन ( ) यथा:- भैरवी
भैहरी भूचरा भावनी ॥ त्रिज़कटा चरपटा चावडा मानवी। जोबना जैकरी जंभरी जालपा ॥ तोतला
तुंदला दंतली कालका ।पारस नाथ ६९ ॥ ॥