Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 68 of 441 from Volume 18

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) ८१

१०. ।जंग जारी॥
९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>११
दोहरा: छिरो जंग भट भेर भा,
अुडी धूल* असमान।
दुतिय धूम बारूद को,
रवि प्रकाश भा हान१ ॥१॥
रसावल छंद: भयो अंधकारं। दिखै धूंम धारं२।
महां धूम३ पाई। हलाहज़ल गाई ॥२॥
छुटैण बान गोरी। दुहूं ओर जोरी४।
घने घाव लागे। लहू चीर पागे५ ॥३॥
फिरे छूछ घोरे। ग़री ग़ीन बोरे६।
मिलैण हेल घालैण। पुकारैण बिसालै ॥४॥
डडै मोड़ि तोड़े। रिपू तुंड फोड़े७+।
चले बाज घोड़े। नहीण जाइ मोड़े ॥५॥
किअू पाइ गेड़े। ढुके जाइ नेड़े८।
लगे अज़ग्र गोरी। गिरेमूंड फोरी ॥६॥
पिखैण और त्रासैण। नहीण जाइ पासैण।
कहूं बीर गाजे। नहीण पाइ भाजे९ ॥७॥
रुपे सिंघ बैसे। छुधा सिंघ जैसे।
सभारैण तुफंगैण। महां क्रोध संगै ॥८॥
पिखैण जाणहि नेरै१०। तकैण तांहि गेरैण।
महां जंग माचा। रजं श्रों राचा ॥९॥
भ्रमी गीध आई। पिखो मास खाई।

*पा:-धूम।
१दूजे बरूद दे धूंए करके सूरज दा प्रकाश नाश हो गिआ।
२धूआण धार ही दिखाई दिंदा है।
३रौला।
४जोड़के। (अ) ग़ोर नाल।
५रंगे गए।
६जिन्हां दीआण काठीआण ग़री नाल मड़्हीआण सन।
७वैरीआण दे मूंह भन दिज़ते।
+पा:-तोड़े।
८कई गेड़े पाके सूरमे नेड़े जा ढुकदे हन।
९भज़जंा नहीण पाअुणदे।
१०जिस ळ नेड़े आया तज़कदे हन (सिंघ)।

Displaying Page 68 of 441 from Volume 18