Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ८७
५. ।गुर प्रताप सूरज दा मुज़ढ किवेण बज़झा॥
दोहरा: रामकुइर इस भांति भा,
ढिग दसमे पातिशाह।
बहुत बारता तबि करी,
आगै सुनीऐ तांहि ॥१॥
चौपई: इस कीकही कितिक गुर कथा।
सरब सुनावोण मम मति जथा१।
मंनी सिंघ भए बुधिवान।
तिनहु ब्रितंत जु कीनि बखान ॥२॥
इस शुभ ग्रंथ बिखै मैण कहौण।
श्री गुर सुजसु जहां ते लहौण।
तहिण ते करोण बटोरन२ सारे।
कितिक सुनी सिज़खन मुख दारे ॥३॥
सो सभि इस मै लिखोण बनाई।
छंद बंद करि सुंदरताई।
कित कित अपर३ थान गुर कथा।
सो मैण रचोण देखि हौण जथा ॥४॥
श्री गुर को इतिहास जगत महिण।
रल मिलि रहो एक थल४ सभि नहिण।
जिम सिकता५ महिण कंचन६ मिलै।
बीन७ डांवला८ ले तिह भलै ॥५॥
तथा जगत ते मैण चुनि लेअूण।
कथा समसत९ सु लिख करि देअूण।
बानी सफल करन के कारन।
१जैसी है।
२इकज़त्र।
३होर।
४इक थां।
५रेता।
६सोना।
७चुं।
८निआरीआ।
९सारी।