Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ८४
११. ।नद चंद तंबोल लैके गिआ। बरात॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>१२
दोहरा: बीत गई जबि जामनी,
अुठहि प्राति को पाइ।
ठानो सौच शनान को,
भए तार तबि आइ ॥१॥
चौपई: चरन बंदना गुर को करि कै।
सगरी वसतू भले संभरि कै१।
संग पंच सै ले असवार।
धारो धनुख बान हज़थार ॥२॥
तोमर तरवारनि कर धरि कै।
गमने चपल तुरगम चरि कै।
सवालाख को ले तंबोल२।
वसतु अजाइब जिन बहु मोल ॥३॥
सकल कहारनि ते अुचवाई।
प्रसथाने श्री नगर सथाई।
मारग सकल अुलघति गए।
रजधानी पुन पहुचति भए ॥४॥
फतेशाहि सुनि कै महिपाल।
डेरे हेतु कहो ततकाल।
पुरि अंतर इक सदन बिसाला।
तहां देहु डेरा जिन घाला ॥५॥
सादर जबि सो थान दिखायो।
करि बिचार नदचंद अलायो।सतिगुर के सिख संग हमारे।
अुज़ग्र३ सुभाव जिनहु रण पारे ॥३॥
अंतर नगर हरख नहि मानहि।
थान कुशाद४ लेनि कौ ठानहि।
डेरा करति परसपर लरहि।
१संभालके।
२निअुणद्रा।
३तेग़।
४खुज़ल्हा।