Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ८७
११. ।देवी दा प्रगट होणा॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>१२
दोहरा: डेढ पहिर दिन के रहे,
नौमी आदितवार।
चेत मास पख सुकल महि,
बिदती जगत अधार१ ॥१॥
सैया: पौन प्रचंड अखंड दिशा२,
महि मंडल महि बड धूल अुडाई*।
घोर घटा चहूं ओर घना घन
घोखति घोख घनो घुमडाई३।
दीरघ दारुं नाद दसो दिशि
यौण कड़को तड़िता तड़फाई४।
ए सभि लछनबीच अकाश
प्रकाश भए डर दे समुदाई५ ॥२॥
भूम बिखै भुवचाल६ बिसाल
कराल भयो भय दा समुदाई७।
डोल डगा मग भेड़ पहाड़
दड़ा दड़ श्रिंग टुटे अधिकाई८।
सिंध नदी९ अुछलैण छलिकैण
मछ कज़छप राछस यौण डरपाई।
कानन ते अुखरे तरु दीरघ
मूल महां द्रिढ काणड बडाई१ ॥३॥
१जगत दा आसरा रूप।
२पौं सभ दिशा विच इको जेही तेग़ (हो गई)।
*पा:-अुठाई।
३भानक घटा चार पासिआण तोण संघणीआण तोण संघणीआण हुंदीआण घुंम के अुमडीआण आ रहीआण ते
कठोर अवाग़ नाल गरजदीआण हन। ।घोर = भानक। घनाघन = संघणीआण तोण संघणीआण। घोखत
= गजदीआण। घोख = अवाग़। घनो = कठोर। जोर दी। घुमडाई = घुंम के अुमडीआण। (अ)
घनाघन = घन ते अघन = अहरण ते हथौड़ा जिवेण वज़जदा है॥।
४बिजली तड़फके ऐअुण कड़की कि भानक नाद होइआ।
५डर देण वाले सारे लछण......।
६भुंचाल।
७सारिआण ळ डरा देण वाला।
८पहाड़ डगमगा के डोलदे हन मानो (भेड़ =) जंग हो रिहा है ते कई चोटीआण डिज़ग रहीआण हन।
९समुंदर ते नदीआण।